भारत में चीतों का पुनर्वास: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अपने जन्मदिन के अवसर पर 8 चीतों को मध्य प्रदेश के 'कुनो राष्ट्रीय पार्क में छोड़ा
• 17 सितंबर यानी आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अपने जन्मदिन के अवसर पर 8 चीतों को मध्य प्रदेश के 'कुनो राष्ट्रीय पार्क में छोड़ा गया।
• इन चीतों में 5 मादा और 3 नर चीते शामिल हैं, जिन्हें चीते की वैश्विक राजधानी 'नामीबिया' से बोइंग 747 विमान के द्वारा लाया गया है।
•चीतों के पुनर्वास की भारतीय योजना एक बहुप्रतीक्षित योजना है। इस वर्ष 12 और चीतों को लाने की योजना है।
• भारत में चीते को वर्ष 1952 में विलुप्त घोषित कर दिया गया था।
चीता |
भारत में चीते के विलुप्त होने का कारण
• जानवरों के शिकार के लिये चीते को पालतू बनाया जाना उनकी प्रकृति के ख़िलाफ़ था ।
• क़ैद में रहने के कारण चीते प्रजनन नहीं करते, जिससे उनकी संख्या पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता गया।
भारत में चीते को बसाने पर चुनौती
• इन चीतों को अन्य शिकारी जानवरों [जैसे तेंदुआ ] से जूझना होगा।
पार्क में चीतों की सुरक्षा
• चीतों की सुरक्षा के मद्देनज़र इन्हें एक महीने तक क्वॉरंटीन जोन में ही रखा जाएगा, जिससे वे इस परिवेश में ढल सकें।
• इस अवधि के दौरान चीते अपने-अपने ज़ोन में ही रहेंगे और शिकार नहीं कर सकेंगे।
• पार्क के आसपास 'चीता मित्रों' की तैनाती भी की गई हैं, जो गाँववासियों को चीते के संबंध में जानकारी देंगे।
सात बड़ी बिल्लियाँ
चीता Acinonyx प्रजाति से संबंध रखता है। पेंथेरा बड़ी जंगली बिल्लियों की प्रजाति है, जिसमें शेर, तेंदुआ, जगुआर, बाघ और हिम तेंदुआ शामिल है। प्यूमा प्रजाति में कूगर आता है।
कुनो राष्ट्रीय पार्क एक नज़र में
• वर्ष 1981 में लगभग 3300 वर्ग किमी के एक बड़े वन क्षेत्र के अंतर्गत लगभग 345 वर्ग किमी के 'कुनो वन्यजीव अभयारण्य' की स्थापना की गई थी।
• वर्ष 2018 में इस क्षेत्र के महत्त्व को देखते हुये इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्ज़ा दे दिया। इस पार्क से कुनो नदी प्रवाहित होती है। यह मध्य प्रदेश के श्योपुर ज़िले के अंतर्गत आता है।
• जैव-भौगोलिक रूप से यह क्षेत्र काठियावाड़ गिर शुष्क पर्णपाती वन पारिस्थितिकी क्षेत्र के अंतर्गत आता है।
• इस क्षेत्र में पाए जाने वाले वनों में उत्तरी उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन, दक्षिणी उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन, शुष्क सवाना वन प्रमुख हैं।
• इस क्षेत्र में करधई, खैर और सलाई के जंगलों व घास के मैदानों की बहुलता है।
• यह जीवों की प्रजातियों में समान रूप से समृद्ध है और वन्य जीवन के अनुकूल है।
Source: Drishti IAS