ढींगरी मशरूम : प्लुरोटस ओस्ट्रिएटस (Pleurotus ostreatus)
परिचय
इसे आमतौर पर भारत Pleurotus ostreatus में "ढींगरी" कहा जाता है। इसका आकार सीप जैसा होता है जिसके कारण इसे सीप मशरूम के नाम से जाना जाता है। कृषि अपशिष्ट और जैविक कचरे की संख्या पर खेती की जा सकती है. महत्वपूर्ण सब्सट्रेट में विभिन्न अनाजों का पुआल, गन्ना, खोई, कपास का कचरा, मूंगफली की फली के गोले, लकड़ी के छोटे टुकड़े, आरी की धूल, मक्का के दाने, केला स्यूडोस्टेम आदि शामिल हैं। इन सामग्रियों की व्यापक उपलब्धता के आधार पर । ढिंगरी मशरूम समशीतोष्ण कालीन छत्रक है , जिसे वर्ष पर्यन्त उगाया जा सकता हैं । इसकी उपज के लिए तापमान 20 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड आवश्यक होता है ।
1917 - फ्लैक ने प्लुरोटस ऑयस्ट्रेटस की पहली सफल खेती का वर्णन किया।
1951 - लॉहाग ने सबसे पहले प्लुरोटस को चूरा मिश्रण पर उगाया।
ढींगरी मशरुम में पाए जाने वाले पोषक तत्त्व:
कार्बोहाइड्रेट: 52%
प्रोटीन: 25%
वसा: 2%
रेशे: 13%
राख: 6%
कैलोरी: 34-35 किग्रा
सब्सट्रेट तैयारी:
बड़ी मात्रा में आसानी से उपलब्ध होने के कारण इसकी खेती आमतौर पर गेहूं या चावल के भूसे पर की जाती है। ढिंगरी मशरूम को उगाने हेतु भूसे को बिना सड़ाये केवल रासायनिक या गरम जल उपचार बाद बीजाई करके उपज प्राप्त की जाती हैं । इस मशरूम का उत्पादन अनुकूल परिस्थितियों में 20 से 25 दिन में ही प्राप्त हो जाता हैं । ढिंगरी मशरूम के उत्पादन हेतु गेहूँ का ताजा भूसा , जिसकी लंबाई 1 1.5 सेमी हो , जिसमें अन्य फसलों के अवशेष नहीं हो , एवं बारिश से भीगा हुआ नहीं हो , काम में लिया जाता है ।
भूसे का उपचार :
चयनित भूसे को उपचार के बाद बीजाई हेतु काम में लिया जाता है । रासायनिक उपचार विधि में सर्वप्रथम भूसे को सीमेंट के टैंक में भरते हैं और ऊपर से टैंक में पानी डाला जाता है , ताकि भूसा पानी से पूरी तरह भीग जाये । अब प्रति 100 लीटर पानी में बाविस्टीन - 7 ग्राम , तथा फार्मलीन -125 मिलीलीटर लेकर थोड़ा पानी मिलाकर घोल बना लेते हैं । अब इस घोल को भूसा व पानी भरे टैंक में चारों ओर घुमाते हुए डाल दें । तत्पश्चात् टैंक को बंद कर दें तथा इसी अवस्था में 12-14 घंटे तक भूसे को उपचारित होने के लिए रहने दें । समय पूरा होने पर टैंक से भूसे को ढलान वाली जगह पर डाल दें , ताकि भूसे का अतिरिक्त पानी निकल जाए।
गरम जल उपचार विधि में भूसे को 10-12 घंटे साफ पानी में एक ड्रम में गलाया -भिगोया जाता है । बाद में उसे इस पानी से निकालकर दूसरे ड्रम में उबलते हुए पानी में , जिसका तापमान 80 डिग्री सेंटीग्रेड़ हो , और उसमे एक घंटे तक पड़ा रहने देते हैं । यदि पानी का तापमान 70 डिग्री सेंटीग्रेड हो तो डेढ़ घंटे तक रखते हैं । निर्धारित समय पश्चात् गरम पानी से निकालकर ढलान वाली जगह पर अतिरिक्त पानी निकलने एवं भूसे को ठण्डा होने के लिए छोड़ देते हैं ।
उपचारित भूसे में नमी की मात्रा की सही जाँच के लिए भूसे को मुट्ठी में लेकर जोर से दबायें , यदि अंगुलियों के बीच से पानी नहीं निकले परंतु हाथ नम हो जाये तो यह बीजाई हेतु उपयुक्त अवस्था मानी जाती हैं । इस समय उपचारित भूसे में बीजाई (spawning) करें । भूसे का उपचार अवांछित फफूंद , जीवाणुओं एवं कीटों के अण्डों से मुक्त करने हेतु किया जाता हैं ।
ढींगरी मशरूम की बीजाई या स्पानिंग :
मशरूम के बीज को स्पाॅन कहतें हैं । भूसे के वजन के 2-3% के बराबर ढींगरी का बीज या स्पान लेकर उसे गीले भूसे में मिला दें । यदि तापमान कम हो तो बीज की मात्रा 3% तक बढ़ा दें ।
मिश्रण मिलवां विधि तथा परतदार विधि:
मिश्रण विधि में उपचारित भूसे में बीज (स्पॉन) व भूसे दोनों को अच्छी तरह मिलाया जाता है। इस बीज व भूसे के मिश्रण को एक साथ पॉलिथिन की थैलियों में जिनका आकार 45 ग 60 सेमी हो व नीचे के दोनों कोने कटे हो, में भरा जाता है।
परतदार विधि में पॉलिथिन की थैलियों में, पहले 3 इंच की ऊंचाई तक भूसा भरा जाता है, तत्पश्चात् इस परत पर बीज छिड़का जाता है। फिर पुन: भूसा डाला जाता है एवं 6 इंच ऊंचाई की परत पर बीज छिड़का जाता है। इस प्रकार चार-पांच परतों में बीज डाला जाता है। ध्यान देने योग्य बिन्दु यह है कि ऊपर व नीचे की ओर भूसे की परत ही होनी चाहिए। इस प्रकार तैयार किये हुए बैग्स को बीज बढ़वार हेतु ताखों (रैक्स) पर रखा जाता है।
फसल और प्रबंधन:
बीजाई करने के बाद थैलियों को कक्ष में रख देने के बाद देखते रहें कि पोलिथीन की थैली में हरा, काला या नीले रंग की फंगस तो उत्पन्न नहीं हो रहा है, अगर फंगस उत्पन हो रहा है तो तुरन्त पोलिथीन को कक्ष से हटाकर दूर फेंक देना चाहिए। अन्यथा दूसरे पोलिथीन बैग भी संक्रमित हो सकते हैं। यदि गर्मियों में ताप अधिक हो तो दीवारों पर पानी छिड़क कर कक्ष को ठंडा रखना चाहिए और पोलिथीन बैग पर पानी का हल्का छिड़काव भी दिन में 2-3 बार करना चाहिए। लगभग 15 से 25 दिन बाद ओयस्टर मशरूम निकलने लगेंगी। जिस कमरे में मशरूम की बीजाई की है उसमें लगभग 4 से 6 घंटे तक प्रकाश आना चाहिए या ट्यूबलाईट भी लगाई जा सकती है।
भरने और स्पॉनिंग के 15-18 दिनों के भीतर, इन थैलियों में माइसेलियम की सफेद कॉटनी वृद्धि फैल जाती है।
मशरूम हाउस में 80-85% नमी बनाए रखने के लिए सुबह-शाम इनके ऊपर पानी का छिड़काव करें।
तापमान 22-26 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए।
अगले 4-5 दिनों में पिनिंग शुरू हो जाता है और फ्रूटिंग बॉडी एक सप्ताह के भीतर पूरी तरह से विकसित हो जाता है।
मशरूम की कटाई:
लगभग 15 से 25 दिन बाद या छतरी के बाहरी किनारे ऊपर मुड़ने लगे तो ओयस्टर मशरूम की पहली तुड़ाई कर लेनी चाहिए। मशरूम को नीचे से हल्का सा मोड़ दिया जाता है जिससे मशरूम टूट जाती है। पहली फसल के 8-10 दिन बाद दूसरी बार मशरूम आती है । इस प्रकार तींन बार उत्पादन लिया जा सकता है। औसत उपज लगभग 100-125 किग्रा मशरूम प्रति 100 किग्रा सूखे भूसे में आती है।
भंडारण और उपयोग :
भंडारण करने के लिए मशरूम को तुरन्त तोड़ कर पोलिथीन में पैक नहीं करनी चाहिए बल्कि लगभग 2 घंटे तक कपड़े या कागज पर सुखाकर पैक करना उचित रहता है, ताकि मशरूम खराब ना हो। मशरूम का उपयोग सूप, सब्जी, बिरयानी, आचार बनाने के लिए किया जाता है. इतना ही नहीं इसे सुखाकर भी सब्जी और सूप बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है।
ढीगरी मशरूम का उत्पादन एक अच्छा बिजनेस आइडिया है। इसमें लागत बहुत कम लगती है। उत्पादन कक्ष भी कच्चे और कम लागत पर बनाए जा सकते है। एक किलो ढीगरी मशरूम पर 10-15 रुपए लागत आती है और बाजार में मांग के अनुसार 200-250 रूपये प्रति किलो ढीगरी मशरूम बेची जा सकती है। या इसको सुखाकर भी बेचा जा सकता है।